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खाद्य सुरक्षा : घटक, महत्व एवं तत्व

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-17 22:40:21

खाद्य सुरक्षा

इतिहास में खाद्य सुरक्षा सदा से एक चिन्ता का विषय रहा है। सन 1974 में विश्व खाद्य सम्मेलन में 'खाद्य सुरक्षा' की परिभाषा दी गयी जिसमें खाद्य आपूर्ति पर बल दिया गया।खाद्य सुरक्षा (food security) से तात्पर्य खाद्य पदार्थों की सुनिश्चित आपूर्ति एवं जनसामान्य के लिये भोज्य पदार्थों की उपलब्धता से है। 

  • खाद्य सुरक्षा में तीन महत्वपूर्ण और निकटता से संबंधित घटक हैं, जो भोजन की उपलब्धता, भोजन तक पहुंच और भोजन का अवशोषण है।

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अर्थात सरल भाषा में, खाद्य सुरक्षा का अर्थ है घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त खाद्यान्नों की उपलब्धता और साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर पहुंच, भोजन की पर्याप्त मात्रा में सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराना।

खाद्य सुरक्षा यह सुनिश्चित करती है कि जब सभी लोगों की शारीरिक और आर्थिक पहुंच पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक हो, तो उनकी आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए और सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिए भोजन को प्राथमिकता।

खाद्य सुरक्षा सार्वजनिक वितरण प्रणाली, शासकीय सतर्कता और खाद्य सुरक्षा के खतरे की स्थिति में सरकार द्वारा की गई कार्रवाई पर निर्भर करती है।

विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार खाद्यान्न सुरक्षा, सभी व्यक्तियों के लिए सभी समय पर सक्रिय और स्वस्थ जीवन हेतु पर्याप्त भोजन की उपलब्धता है।

खाद्य एवं कृषि संस्था (1983) ने खाद्य सुरक्षा की परिभाषा देते हुए कहा कि सभी व्यक्तियों को सभी समय पर उनके लिए आवश्यक बुनियादी भोजन के लिए भौतिक एवं आर्थिक दोनों रूप में उपलब्धि के आश्वासन से है।

समान्यतः समाज का अधिक गरीब वर्ग तो हर समय खाद्य सुरक्षा से ग्रस्त हो सकता है, परंतु जब देश भूकंप, सूखा, बाढ़, सुनामी, फसलों के खराब होने से पैदा हुए अकाल आदि राष्ट्रीय आपदा से गुजर रहा हो तो निर्धनता रेखा से ऊपर के लोग भी खाद्य सुरक्षा से ग्रस्त हो सकते हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों से बचने के लिए खाद्य सुरक्षा आवश्यक है।


खाद्य सुरक्षा की अवधारणा व्यक्ति के मूलभूत अधिकार को परिभाषित करती है। अपने जीवन के लिये हर किसी को निर्धारित पोषक तत्वों से परिपूर्ण भोजन की जरूरत होती है। महत्वपूर्ण यह भी है कि भोजन की जरूरत नियत समय पर पूरी हो। इसका एक पक्ष यह भी है कि आने वाले समय की अनिश्चितता को देखते हुये हमारे भण्डारों में पर्याप्त मात्रा में अनाज सुरक्षित हों, जिसे जरूरत पड़ने पर तत्काल जरूरतमंद लोगों तक सुव्यवस्थित तरीके से पहुँचाया जाये। हाल के अनुभवों ने सिखाया है कि राज्य के अनाज गोदाम इसलिये भरे हुए नहीं होना चाहिए कि लोग उसे खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं। इसका अर्थ है कि सामाजिक सुरक्षा के नजरिये से अनाज आपूर्ति की सुनियोजित व्यवस्था होना चाहिए। यदि समाज की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहेगी तो लोग अन्य रचनात्मक प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका निभा पायेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार का दायित्व है कि बेहतर उत्पादन का वातावरण बनाये और खाद्यान्न के बाजार मूल्यों को समुदाय के हितों के अनुरूप बनाये रखें। मानव अधिकारों की वैश्विक घोषणा (1948) का अनुच्छेद 25 (1) कहता है कि हर व्यक्ति को अपने और अपने परिवार को बेहतर जीवन स्तर बनाने, स्वास्थ्य की स्थिति प्राप्त करने, का अधिकार है जिसमें भोजन, कपड़े और आवास की सुरक्षा शामिल है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) ने 1965 में अपने संविधान की प्रस्तावना में घोषणा की कि मानवीय समाज की भूख से मुक्ति सुनिश्चित करना उनके बुनियादी उद्देश्यों में से एक है।

 


खाद्य सुरक्षा के व्यावहारिक पहलू :- 

उत्पादन-

 यह माना जाता है कि खाद्य आत्मनिर्भरता के लिए उत्पादन में वृद्धि करने के निरन्तर प्रयास होते रहना चाहिए। इसके अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के अनुरूप नई तकनीकों का उपयोग करने के साथ-साथ सरकार को कृषि व्यवस्था की बेहतरी के लिये पुनर्निर्माण की नीति अपनाना चाहिए।

वितरण-

 उत्पादन की जो भी स्थिति हो राज्य के समाज के सभी वर्गों को उनकी जरूरत के अनुरूप अनाज का अधिकार मिलना चाहिए। जो सक्षम है उसकी क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए आजीविका के साधन उपलब्ध होना चाहिए और जो वंचित एवं उपेक्षित समुदाय हैं (जैसे- विकलांग, वृद्ध, विधवा महिलायें, पिछड़ी हुई आदिम जनजातियाँ आदि) उन्हें सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा करवाना राज्य का आधिकार है।


ध्यातव्य दे कि आपाताकालीन व्यवस्था में खाद्य सुरक्षा समय की अनिश्चितता उसके चरित्र का सबसे महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक आपदायें समाज के अस्तित्व के सामने अक्सर चुनौतियां खड़ी करती हैं। ऐसे में राज्य यह व्यवस्था करता है कि आपात कालीन अवस्था (जैसे- सूखा, बाढ़, या चक्रवात) में प्रभावित लोगों को भुखमरी का सामना न करना पड़े।


खाद्य सुरक्षा के तत्व :-


1. उपलब्धता -

 प्राकृतिक संसाधनों से खाद्य पदार्थ हासिल करना-

 • सुसंगठित वितरण व्यवस्था

 • पोषण आवश्यकता को पूरा करना

 • पारम्परिक खाद्य व्यवहार के अनुरूप होना

 • सुरक्षित होना

 • उसकी गुणवत्ता का मानक स्तर का होना

 

2. आर्थिक पहुँच- 

यह सुनिश्चित होना चाहिए कि खाद्यान्न की कीमत इतनी अधिक न हो कि व्यक्ति या परिवार अपनी जरूरत के अनुरूप मात्रा एवं पोषण पदार्थ का उपभोग न कर सके। स्वाभाविक है कि समाज के उपेक्षित और वंचित वर्गों के लिये सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के जरिए खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

3. भौतिक पहुँच-

इसका अर्थ यह है कि पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न हर व्यक्ति के लिये उसकी पहुँच में उपलब्ध होना चाहिए। इस सम्बन्ध में शारीरिक-मानसिक विकलांगों एवं निराश्रित लोगों के लिए पहुँच को सुगम बनाना जरूरी है।

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