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द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)

By - Gurumantra Civil Class

At - 2024-01-17 22:36:55

द्वितीय पंचवर्षीय योजना

 

इस योजना का कार्यकाल 1 अप्रैल 1956 से 31 मार्च 1961 तक रहा जो कि पी.सी महालनोबिस द्वारा विकसित चार क्षेत्रीय मॉडलों पर आधारित था। इस योजना के तहत विकास की नीति तीव्र  और औद्योगीकरण पर बल दिया गया, जिसमें भारी उद्योगों तथा पूंजीगत माल को प्राथमिकता दी गई। नियमानुसार इस योजना के अध्यक्ष प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे एवं उपाध्यक्ष बीटी कृष्णमाचारी थे। 

 

इस पंचवर्षीय योजना के दौरान 1959 में राजस्थान में पहली बार पंचायत व्यवस्था शुरू किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश समाजवादी समाज की स्थापना करना था। देश की जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए 5 वर्षों में राष्ट्रीय आय में 25% की वृद्धि लक्ष्य निर्धारित किया गया था किंतु 1960-61  की कीमतों पर राष्ट्रीय आय में 19.5% की वृद्धि हुई । जनसंख्या में भारी वृद्धि के कारण जिस अनुपात में राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई उस अनुपात में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि नहीं हो पाई, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि केवल 8% रही ।

इस योजना का उद्देश्य रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना, देश में आय व संपत्ति की असमानता को दूर करना, देश में तीव्र गति से औद्योगीकरण करना, आधारभूत भारी उद्योगों के विकास पर विशेष रूप से ध्यान देना था। 


इस पंचवर्षीय योजना में आधारभूत उद्योग,  जैसे कि कोयला, बिजली, भारी इंजीनियरिंग, लौह व इस्पात, उर्वरक पर विशेष बल दिया गया।


इस योजना में रेल - सड़क परिवहन तथा बंदरगाहों के विकास से संबंधित और औद्योगिक योजनाएं प्रारंभ की गई।

 

इस योजना के दौरान अनेक कारखाने स्थापित हुए । राउरकेला लौह  इस्पात संयंत्र- जर्मनी के सहयोग से, भिलाई लौह इस्पात संयंत्र - रूस के सहयोग से, दुर्गापुर लौह इस्पात संयंत्र - ब्रिटेन के सहयोग से स्थापित किए गए । इनके अलावे चितरंजन रेल बनाने के कारखाने तथा इंटीग्रल रेल कोच फैक्ट्री इस योजना की विशेष उपलब्धि रही।

इस योजना में द्वितीय प्राथमिकता यातायात व संचार को दी गई, जिस पर 28% राशि व्यय किया गया।  सार्वजनिक क्षेत्र के व्यय  लगभग 24% राशि रही जहां कि ₹4800 करोड़ व्यय करने का लक्ष्य था किंतु वास्तविक व्यय ₹4672 करोड़ रुपये हुआ।


 इस योजना में कृषि विकास उपेक्षा की गई किंतु इसके बावजूद 210 लाख एकड़ अतिरिक्त भूमि को सिंचाई उपलब्ध कराई गई।

 इस योजना के उद्देश्य संक्षेप में-

◆  राष्ट्रीय आय में 25% की वृद्धि करना, 
◆ आधारभूत और भारी उद्योगों पर विशेष जोर देकर तीव्र औधोगीकरण करना, 
◆ रोजगार अवसरों में बड़े पैमाने पर प्रसार 
◆ आय और धन की असमानता में कमी करना और आर्थिक शक्ति का अधिक समान वितरण करना ।


आलोचकों के अनुसार इस योजना की सबसे बड़ी कमी यह रही कि तीन इस्पात उद्योग स्थापित किए तो गए किंतु उत्पादक लक्ष्य प्राप्त नहीं किया गया। विद्युत की कमी प्रत्येक राज्य में बनी रही। बंद तथा सीमित अर्थव्यवस्था, खाद्यान्न तथा पूंजी की कमी इस योजना के व्यवधान थे। योजना का लक्ष्य 4.5% था जबकि प्राप्त विकास दर लगभग 4.3% हासिल हुआ अर्थात यह योजना महत्वाकांक्षी होने के बावजूद कई कमियां एवं व्यवधान के कारण असफल रहे।

हालांकि कुछ अर्थशास्त्री सामान्य रूप से इस योजना को भी सफल मानते हैं।

 

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